Wednesday, April 29, 2009

जन्म से अब तक सीखती आ रही हूँ । फ़िर भी कभी कभी लगता है कि अभी भी सीखना बहुत कुछ बाकी है। स्थितियां इस कदर बदल जाती हैं कि पिछला सीखा हुआ कम पड़ जाता है। जिन्दगी कितनी जल्दी अपने अर्थ बदलने लगती है। ऐसा कई बार महसूस हुआ । चलो स्थितियां हमारे अनुकूल ढलें या न ढलें मगर हमें जिन्दगी के अनुकूल ढ़लना ही होगा । शायद यही जिन्दगी है।

8 comments:

  1. जिंदगी को जितना सीखो ...वो हर पल कुछ न कुछ नया सिखाती रहती है ...और हम कितना सीखते हैं ये भी है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. इस कहते है "सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट ".

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  3. जिंदगी का तो कोई और छोर ही समझ में नहीं आता...समझते हुए ही बीत जाती है!तभी तो कहा है की हर पल को पूरी मस्ती और उल्लास से जीना चाहिए...

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  4. seekhna hi zindagi hai.
    aakhiri sans tak chalti hai yah prakriya.

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  5. chalne ke saath sath jeevan main seekhna bahut zaroori hai
    shandaar bhavavyakti

    आप अच्छा लिखते हैं ,आपको पढ़कर खुशी हुई
    साथ ही आपका चिटठा भी खूबसूरत है ,

    यूँ ही लिखते रही हमें भी उर्जा मिलेगी ,

    धन्यवाद
    मयूर
    अपनी अपनी डगर

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  6. निरंतर कुछ न कुछ सीखने का नाम ही तो जीवन है !

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  7. यकीनन, एक अच्‍छा इंसान हर कदम पर सीखता है।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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