जन्म से अब तक सीखती आ रही हूँ । फ़िर भी कभी कभी लगता है कि अभी भी सीखना बहुत कुछ बाकी है। स्थितियां इस कदर बदल जाती हैं कि पिछला सीखा हुआ कम पड़ जाता है। जिन्दगी कितनी जल्दी अपने अर्थ बदलने लगती है। ऐसा कई बार महसूस हुआ । चलो स्थितियां हमारे अनुकूल ढलें या न ढलें मगर हमें जिन्दगी के अनुकूल ढ़लना ही होगा । शायद यही जिन्दगी है।
Wednesday, April 29, 2009
Sunday, April 26, 2009
मेरे मन की व्यथा
आज कल देते नहीं वो मुझको भाव।
अनगिनत हो गए मेरे दिल पे घाव।
तन-मन से मैं समर्पित हूँ फ़िर भी
खेलते रहते हैं वो रोज़ नए नए दाव।
मिलके खाते थे दोनों खाना साथ साथ
आज कल तो पूछते नहीं आओ खाव।
कुछ भी बोलूं तो मेरी सुनते ही नहीं
मेरी बात बात पे वो खा जाते हैं ताव।
तारीफ में मेरी कभी वो बांधते थे पुल
कहते थे तुम ही मेरे जीवन की नाव।
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