Sunday, April 26, 2009
मेरे मन की व्यथा
आज कल देते नहीं वो मुझको भाव।
अनगिनत हो गए मेरे दिल पे घाव।
तन-मन से मैं समर्पित हूँ फ़िर भी
खेलते रहते हैं वो रोज़ नए नए दाव।
मिलके खाते थे दोनों खाना साथ साथ
आज कल तो पूछते नहीं आओ खाव।
कुछ भी बोलूं तो मेरी सुनते ही नहीं
मेरी बात बात पे वो खा जाते हैं ताव।
तारीफ में मेरी कभी वो बांधते थे पुल
कहते थे तुम ही मेरे जीवन की नाव।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कुछ तारीफ आप कर दें तो खूब चलेगी नाव।
ReplyDeleteआपस की मीठी बातों से मिले परस्पर भाव।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
आपने बिलकुल अलग हट कर रचना प्रस्तुत की है
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
यह जो भी है..गजलनही है...
ReplyDeletewelcome
ReplyDeletehttp://www.ashokvichar.blogspot.com
aapka vakt bhee badal gya hoga, narayan narayan
ReplyDeleteभाव खाओगे तो भाव ही घट जायेगा
ReplyDeleteऔर तकरार से वक़्त भी कट जायेगा....
अच्छी रचना के लिये साधू-वाद्
आज कल देते नहीं वो मुझको भाव।
ReplyDeleteअनगिनत हो गए मेरे दिल पे घाव।
dil ki vyatha batati rachna..yun hi likhti raheeye!swagat hai!
[shukriya aap mere blog par aayin,ek housewife ke liye blogging ke liye samay nikalna bahut mushkil hota hai..lekin blogging jaari raheeye..]
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर कृति.
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
narayan narayan
ReplyDelete