Tuesday, September 28, 2010
यत्र योगेश्वरः कृष्णो
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीविजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
जहाँ योगेश्वरः भगवान् श्रीकृष्ण हैं। और जहाँ गांडीव- धनुर्धारी अर्जुन है, वही पर श्री विजय , विभूति और अचल नीति है।
-भगवतगीता
Wednesday, April 29, 2009
जन्म से अब तक सीखती आ रही हूँ । फ़िर भी कभी कभी लगता है कि अभी भी सीखना बहुत कुछ बाकी है। स्थितियां इस कदर बदल जाती हैं कि पिछला सीखा हुआ कम पड़ जाता है। जिन्दगी कितनी जल्दी अपने अर्थ बदलने लगती है। ऐसा कई बार महसूस हुआ । चलो स्थितियां हमारे अनुकूल ढलें या न ढलें मगर हमें जिन्दगी के अनुकूल ढ़लना ही होगा । शायद यही जिन्दगी है।
Sunday, April 26, 2009
मेरे मन की व्यथा
आज कल देते नहीं वो मुझको भाव।
अनगिनत हो गए मेरे दिल पे घाव।
तन-मन से मैं समर्पित हूँ फ़िर भी
खेलते रहते हैं वो रोज़ नए नए दाव।
मिलके खाते थे दोनों खाना साथ साथ
आज कल तो पूछते नहीं आओ खाव।
कुछ भी बोलूं तो मेरी सुनते ही नहीं
मेरी बात बात पे वो खा जाते हैं ताव।
तारीफ में मेरी कभी वो बांधते थे पुल
कहते थे तुम ही मेरे जीवन की नाव।
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